गुलाबी चूड़ियाँ (Gulabi Chudiyan) Nagarjun


प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!

सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…

झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ साब

लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ

क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा।

छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -

हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!
--नागार्जुन

मै नास्तिक हूँ,(Main Nastik Hoon)




मै नास्तिक हूँ,..........
मै नास्तिक हूँ,.........

मै नास्तिक हूँ,
क्यूंकि मै अपनी सफलता का क्ष्रेय नही देता उस मूर्ति को,
जिसे बनाया है हममे से ही किसी शक्श ने,
मै नास्तिक हूँ,
क्यूंकि मै परीक्षा देने से पहले दीपक नही जलाता पत्थरों के आगे,
कथा यज्ञ और पूजा मी हिस्सा नही लेता,

हो सकता है की मै नास्तिक ही हूँ,
क्यूंकि और आस्तिको की तरह,
नही देता हूँ भूखो को गाली,

मै सीता की बजाय झाँसी की रानी को पसंद करता हूँ,
क्यूंकि देखा है सीताओं को अग्नि परीक्षा देते हुए,
यदि रामायण पड़कर, और आस्तिक होकर,
पत्नी को धोखा और पिता को वृधाश्रम मे रखना है,
तो मै खुश हूँ की मै नास्तिक ही हूँ......

--अज्ञात