हार कबूल करता क्यूँ नहीं है
ये आदमी मरता क्यूँ नहीं है?
कई बार धमाकों से उड़ाया जाता है
गोलियों से परखच्चों में बदल दिया जाता है
ट्रेनों की छतों से खींच कर
नीचे पटक दिया जाता है।
अमीर जादों की "डरंकन ड्राइविंग"
के जश्न में कुचल दिया जाता है.......
कभी दंगों की आग में
जला कर ख़ाक कर दिया जाता है।
कहीं बाढ़ रहत के नाम पर
ठोकर दर ठोकर कत्ल कर दिया जाता है
कभी थाने में उल्टा लटकाकर
दम निकलने तक बेदम पीटा जाता है।
कभी बराबरी जुर्रत में
घोडे के पीछे बाँध कर खींचा जाता है।
सारी ताकतें चुक गयीं
मारते मारते ख़ुद थक गयीं
न अमरता ढोता कोई आत्मा है
न अश्वथामा न परमात्मा है।
फ़िर भी जाने इसमें क्या भरा है
हजारों साल से सामने खड़ा है
मर मर के जी जाता है।
सूखी जमीन से अंकुर सा फूट आता है
ख़त्म हो जाने से डरता क्यूँ नहीं है।
ये आदमी मरता क्यूँ नहीं है?????
शहीद हूँ मैं .....
मेरे देशवाशियों
जब कभी आप खुलकर हंसोंगे ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी नही हँसेंगे...
जब आप शाम को अपने
घर लौटें ,और अपने अपनों को
इन्तजार करते हुए देखे,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी भी मेरा इन्तजार नही करेंगे..
जब आप अपने घर के साथ खाना खाएं
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
जो अब कभी भी मेरे साथ खा नही पायेंगे.
जब आप अपने बच्चो के साथ खेले ,
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
मेरे बच्चों को अब कभी भी मेरी गोद नही मिल पाएंगी !!
जब आप सकून से सोयें
तो मेरे परिवार को याद कर लेना ...
वो अब भी मेरे लिए जागते है ...!!
मेरे देशवाशियों ;
शहीद हूँ मैं ,
मुझे भी कभी याद कर लेना ..
आपका परिवार आज जिंदा है ;
क्योंकि ,
नही हूँ...आज मैं !!!!!
शहीद हूँ मैं …………॥!!!!
--विजय कुमार
हँसा जोर से
तो दुनिया बोली,
"इसका पेट भरा है"।
और फूट कर रोया जब
तो दुनिया बोली,
"नाटक है नखरा है"।
चुप रह गया,
तो लगाई तोहमद घमंड की,
कभी नही समझी वह,
इसके भीतर कितना दर्द भरा है।
दोस्त कठिन है यहाँ किसी
को अपनी पीड़ा समझाना,
दर्द उठे तो सुने पथ पर
पाँव बढ़ाना चलते जाना।