लड़के ने धीमी होती रेल की खिड़की के बाहर देखा तो लगा साक्षात चाँद धरा पर उतर आया हो| अलसी भौर में उनींदे नयन सीप | अपलक देखता ही रह गया | कुछ संयत हो, हाथ में पानी की केतली ले उतरा और वहां चला, जहाँ वह मानक सौंदर्य मूर्ति जल भर रही थी | फासला कम होता गया, सम्मोहन बढ़ता गया | समक्ष पहुँचने तक दोनों के मध्य स्मित अवलंबित नजर सेतु स्थापित हो चुका था | भावनाओं का परिवहन होने लगा | लड़के ने देखा लड़की की पगतली पर महावर रची थी | किसी परिणय यात्रा की सदस्या थी | बालों से चमेली की खुशबू का ज्वार सा उठा, लड़का मदहोश हो गया | कलाई थाम ली, हथेली पर रचे मेहंदी के बूटों पर अधर रख दिये | लड़की की पलकें गिर गई | तभी लड़की के पास खड़ा पानी भरता एक मुच्छड़ मुड़ा | अग्नि उद्वेलित नजरों से घूरा और अपने हाथ को लडके की कनपट्टी की दिशा में घुमा दिया | लड़का झुका और स्वयं को बचाया | इतने में उसकी ट्रेन खिसकने लगी | वह लपक कर चढ़ गया | दूसरी तरफ़ उनकी की ट्रेन भी चल पड़ी | वह मुच्छड़ के साथ घसीटती सी चली | गति पकड़ती ट्रेन की खिड़की से एक मेहंदी रची हथेली हिल रही थी | लड़का आंख में पड़ा कोयला मसलने लगा |
.
--विनय के जोशी
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
-
मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 वर्ष पहले
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें