हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह -2,
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे।
हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह -२।
मेरी मंजिल है कहाँ मेरा ठिकाना है कहाँ -2,
सुबह तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ,
सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे ।
हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह -२।
अपनी आंखों में छुपा रक्खे हैं जुगनू मैंने,
अपनी पलकों पे सजा रक्खे हैं आंसू मैंने,
मेरी आंखों को भी बरसात का मौका दे दे।
हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह -२।
आज कि रात मेरा दर्द-ऐ-मोहब्बत सुन ले,
कप-कापते होठों की शिकायत सुन ले,
आज इज़हार-ऐ ख़यालात का मौका दे दे।
हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह -२।
भूलना ही था तो ये इकरार किया ही क्यूँ था,
बेवफा तुने मुझे प्यार किया ही क्यूँ था,
सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे।
हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह -2,
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे।
हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह -२।
--ग़ज़ल (जगजीत सिंह)
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 वर्ष पहले
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