लघुकथाः मूक- विरोध (Mook Virodh) Laghukatha

सुनील के यहाँ दो लड़कियों पर लड़का हुआ था। सो हम पति-पत्नी उसे बधाई देने पहुँचे थे। कॉल बेल बजाने ही वाला था कि अन्दर से जोर-जोर से लड़ाई की आवाज सुनकर ठहर गया।
''पापा आप खुश होते रहे अपने लाडले के जन्म पर। हमें आप के इस कार्य से बहुत ठेस पहुँची है।"
आवाज़ उनकी बड़ी बेटी इला की थी ।
''बेटी क्या कह रही हो तुम- क्या तुम्हें अपने भाई के जन्म पर खुशी नहीं है।"
''आप मेल शाऊन्जिम (पुरूषतावादी) की बात कर रहे हैं मैं बारहवीं में तथा इड़ा नवीं में है
आप की उम्र अड़तालीस व मम्मी की चव्वालीस वर्ष है क्या आपके दो बेटियों की जगह दो बेटे होते तब भी आप एक बेटी पैदा करते, भ्रूण जाँच करवाते?" इला झपटते हुए कह रही थी।
''बेटे वंश चलाने के लिए' सुनील की पत्नी की मरी सी आवाज निकली।
''बस चुप करिये मम्मी। और हाँ, आप दोनो सुन लीजिए अगर आपने बेटा होने का जश्र मनाया तो मैं और इड़ा मुँह पर पट्टी बाँधकर मूक विरोध करेंगे। समझे?"
यह सुन कर हम पति-पत्नि ने बिना बधाई के वापिस लौटने में गनीमत समझी ।

--श्याम सखा 'श्याम'

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