तुम (Tum)






किसी के पागलपन की पहचान हो तुम,
किसी की ज़िन्दगी का अरमान हो तुम,
मुस्कराना भले ही कुछ ना हो तुम्हारे लिये,
किसी की ज़िन्दगी की मुस्कान हो तुम.

किसी की सबसे खूबसूरत रचना हो तुम,
किसी की प्रथम और अन्तिम अर्चना हो तुम,
ख़ुद को भले ही तुम कभी समझ ना सकी हो,
पर किसी के लिये अधूरा अन्सुना एक सपना हो तुम.


किसी के प्यार भरी नज़रों की कामना हो तुम,
किसी के वर्षों की तमन्ना और साधना हो तुम,
कहीं हो पूजा, कहीं हो दुआ,
कहीं पे नेमत्त, कहीं प्रार्थना हो तुम.


बर्फ़ से जल उठे जो, किसी की वो प्यास हो तुम,
ईश्वर ही रह जाये जिसके बाद, वो आस हो तुम,
चलना ज़रा आहिस्ता अपना वज़ूद समझकर,
किसी टिमटिमाते दिये की आखिरी साँस हो तुम.


ज़िन्दगी की शुरूआत ना सही, समापन तो हो तुम,
किसी की मोहब्बत का एकमात्र समर्पण हो तुम,
हजारों चेहरों में खोये इन चेहरों को गौर से देखो,
किसी एक चेहरे के लिये जीवन का दर्पण हो तुम.

महक उठे मिट्टी भी , वो एक बरसात हो तुम,
रोशन कर दे ज़र्रा ज़र्रा , पूनम की रात हो तुम,
मेरे लिये वजह तो कभी कुछ थी ही नहीं मगर,
जीता हूँ जिस जिसके लिये , वो हर बात हो तुम।

खुशनुमा सुबह हो, या उससे पहले की सहर हो तुम,
वक़्त हो पल भर का,या जीवन का हर प्रहर हो तुम,
चाँद को कह तो दूँ , प्रतिमान सुन्दरता का मगर,
चाँदनी की किस्मत पर , रूप का कहर हो तुम।

सिर्फ एक मौसम हो , या पूरी बहार हो तुम,
पहली खामोशी हो , या आखिरी पुकार हो तुम,
लड़ने की आरज़ू हो, या मरने की हसरत हो,
जीत हो किसी की ,या किसी की हार हो तुम।

अहसास तुमको ना सही , किसी का अहसास हो तुम,
दुनिया बदल दे जो, दिल की वो आवाज़ हो तुम,
खुद की अहमियत से हो अन्जान, पर अब तो जान लो,
कि सुरों की थिरकन हो , जीवन का साज हो तुम।

क्षितिज हो किसी का, किसी का फलक हो,
हंसने की वज़ह हो, खुशियों की झलक हो,
अपने वज़ूद को समझने की कोशिश तो करो,
लड़ने का इरादा हो तुम, जीत की ललक हो.

--पंकज बसलियाल

2 टिप्पणियाँ:

रवि रतलामी ने कहा…

विभिन्न कवियों की कविताओं को प्रस्तुत करने का यह प्रयास स्तुत्य है.

बेनामी ने कहा…

i love this poem u have done gr8 work thank u...