tag:blogger.com,1999:blog-48636370001417000642024-03-16T12:38:07.844+05:30Hindi Poems & StoriesHindi Poems & Stories of Various Writers..खोने की जिद में क्यूँ भूलते हो कि पाना भी होता है....Anonymousnoreply@blogger.comBlogger83125tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-69890488338095421262009-11-02T21:29:00.002+05:302009-11-02T21:32:37.387+05:30मुश्किल है अपना मेल प्रिये (Mushkil hai Apna Mail Priye)मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रियेमुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रियेतुम ऍम ऐ फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रियेमुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रियेतुम फौजी अफसर की बेटी , मैं तो किसान का बेटा हूँतुम रबडी खीर मलाई हो, मै तो सत्तू सपरेटा हूँतुम ऐ-सी घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँतुम नई मारुती लगती हो, मै स्कूटर लम्ब्रेटा Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-2362295874464437602009-10-28T15:53:00.001+05:302009-10-28T15:56:55.628+05:30अग्नि पथ !! (Agni Path)अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!वृक्ष हों भले खड़े,हो घने, हो बड़े,एक पत्र-छॉंह भी मॉंग मत, मॉंग मत, मॉंग मत!अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!तू न थकेगा कभी!तू न थमेगा कभी!तू न मुड़ेगा कभी!कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है,अश्रु श्वेत् रक्त से,लथ पथ, लथ पथ, लथ पथ !अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!--हरिवंशराय बच्चनAnonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-75791586045997679492009-10-16T00:56:00.002+05:302009-10-16T01:03:48.930+05:30परिन्दे को क्या पता (Parinde Ko Kya Pata)बदनीयतों की चाल, परिन्दे को क्या पताफैला कहाँ है जाल, परिन्दे को क्या पतालोगों के, कुछ लज़ीज़, निवालों के वास्तेउसकी खिंचेगी खाल, परिन्दे को क्या पताइक रोज़ फिर उड़ेगा कि मर जाएगा घुटकरइतना कठिन सवाल, परिन्दे को क्या पतापिंजरा तो तोड़ डाला था, पर था नसीब मेंउससे भी बुरा हाल, परिन्दे को क्या पतादेखा है जब से एक कटा पेड़ कहीं परहै क्यूं उसे मलाल, परिन्दे को क्या पताउड़ कर हजारों मील इसी झील Anonymousnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-67428901342549776542009-10-11T21:34:00.005+05:302009-10-16T00:42:50.242+05:30खिड़कियाँ, सिर्फ़, न कमरों के दरमियां रखना (Khidkiyan sirf na kamron ke darmiyan rakhna)खिड़कियाँ, सिर्फ़, न कमरों के दरमियां रखनाअपने ज़ेहनों में भी, थोड़ी सी खिड़कियाँ रखनापुराने वक़्तों की मीठी कहानियों के लिएकुछ, बुजुर्गों की भी, घर पे निशानियाँ रखनाज़ियादा ख़ुशियाँ भी मगरूर बना सकती हैंसाथ ख़ुशियों के ज़रा सी उदासियाँ रखना.बहुत मिठाई में कीड़ों का डर भी रहता हैफ़ासला थोड़ा सा रिश्तों के दरमियां रखनाअजीब शौक़ है जो क़त्ल से भी बदतर हैतुम किताबों में दबाकर न तितलियाँ रखनाबादलो, Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-79588942530978086392009-10-09T22:42:00.010+05:302009-10-09T23:00:40.905+05:30शेर-ओ-शायरी (Kuch Sher and Shayari)जनाजा रोककर वो मेरे से इस अन्दाज़ मे बोले,गली छोड्ने को कही थी हमने तुमने दुनियां छोड दी।जो गिर गया उसे और क्यों गिराते हो,जलाकर आशियाना उसी की राख उड़ाते हो ।गुज़रे है आज इश्क के उस मुकाम से,नफरत सी हो गयी है मोहब्बत के नाम से ।जब जुबां खामोशी होती है नज़र से काम होता है,ऐसे माहौल का ही शायद मोहब्बत नाम होता है।वो फूल जिस पर ज्यादा निखार होते हैं,किसी के दस्त हवस का शिकार होते हैं ।पी लिया करते हैंAnonymousnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-44197054960454842632009-10-07T00:00:00.004+05:302009-10-09T22:44:13.924+05:30वक़्त का ये परिंदा रुका है कहाँ (Waqt ka Ye Parinda Ruka Hai Kahan) वक़्त का ये परिंदा रुका है कहाँमैं था पागल जो इसको बुलाता रहाचार पैसे कमाने मैं आया शहरगाँव मेरा मुझे याद आता रहा |लौटता था मैं जब पाठशाला से घरअपने हाथों से खाना खिलती थी माँरात में अपनी ममता के आँचल तलेथपकीयाँ मुझे दे के सुलाती थी माँ ||सोच के दिल में एक टीस उठती रहीरात भर दर्द मुझको जागता रहाचार पैसे कमाने मैं आया शहरगाँव मेरा मुझे याद आता रहा ||सबकी आँखों में आँसू छलक आए थेजब रवाना हुआ था Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-32028457817314357472009-09-25T16:58:00.001+05:302009-10-09T22:44:29.266+05:30तुम (Tum)किसी के पागलपन की पहचान हो तुम,किसी की ज़िन्दगी का अरमान हो तुम,मुस्कराना भले ही कुछ ना हो तुम्हारे लिये,किसी की ज़िन्दगी की मुस्कान हो तुम.किसी की सबसे खूबसूरत रचना हो तुम,किसी की प्रथम और अन्तिम अर्चना हो तुम,ख़ुद को भले ही तुम कभी समझ ना सकी हो,पर किसी के लिये अधूरा अन्सुना एक सपना हो तुम.किसी के प्यार भरी नज़रों की कामना हो तुम,किसी के वर्षों की तमन्ना और साधना हो तुम,कहीं हो पूजा, कहीं हो Anonymousnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-91275053799691677292009-09-25T16:49:00.001+05:302009-10-09T22:44:43.200+05:30(तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ)Tumhi Ko Bhulana Sabse Zaroori samajhta hoonजिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है,जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है.झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर,तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है.जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है ,कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उमर मगर ,बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है .पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वारAnonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-9040846508914528402009-09-25T16:42:00.001+05:302009-10-06T14:20:18.053+05:30मैं खुश हूँ .(Main Khus Hoon)
जी , मैं खुश हूँ .
आपने सही सुना , कि मैं खुश हूँ .
शायद आज किसी को रोते नहीं देखा ,
नंगे बदन फ़ुटपॉथ पर सोते नहीं देखा ,
शायद रिश्तों की कालिख छुपी रही आज,
तो किसी को टूटी माला पिरोते नहीं देखा.
आज भी भगवान को किसी की सुनते नहीं देखा,
पर हाँ, आज किसी के सपनों को लुटते नहीं देखा,
तन्हा नहीं देखा , किसी को परेशान नहीं देखा,
पाई पाई को मोहताज, सपनों को घुटते नहीं देखा.
बैचैनी नहीं दिखी, कहीं Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-82771894748787743712009-09-25T16:32:00.000+05:302009-09-25T16:32:25.728+05:30आरम्भ है प्रचंड (Aarambh hai Prachand)- In Hindi Font
आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो,
आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो,
आन बान शान, याकि जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो!
आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो,
आन बान शान, याकि जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो!
आरम्भ है प्रचंड........
मन करे सो प्राण दे, जो Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-45714855184465372332009-09-18T02:59:00.000+05:302009-09-18T02:59:28.486+05:30महफ़िलों की नीयतें बदल गयीं हैं (Mahafilon Ki Neeyatein Badal Gayi hain Aaj Kal) महफ़िलों की नीयतें बदल गयीं हैं आजकल
महमिलों से आजकल शराब निकलती नहीं
क़ातिलों के कायदे खुदा भी जानता नहीं
जान गई पर मुई हिज़ाब निकलती नहीं
जिन्दगी जवाब चाहती हरेक ख्वाब का
ख्वाब बह गये मगर अज़ाब निकलती नहीं
ख़्वाहिशों के अश्क हैं हज़ार मौत मर रहे
कब्रगाह से मगर चनाब निकलती नहीं
क़ौम कई लुट गये मोहब्बतों के खेल में
क्यों इबादतों से इन्कलाब निकलती नहीं
तेरे इन्तजार में बिगड़ गयी हैं आदतें
रह Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-32482970739582873562009-09-14T21:08:00.000+05:302009-09-14T21:08:25.315+05:30जन गण मन अधिनायक जय हे (Jan Gan Man Adhinayak Jai He)राष्ट्रगान जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मागे
गाहे तव जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे!!राष्ट्रगान के बाद वाले पदपतन-अभ्युदय-वन्धुर-पंथा,
युगयुग धावित यात्री,
हे चिर-सारथी,
तव रथ चक्रेमुखरित पथ दिन-रात्रि
दारुण विप्लव-माझे
तवAnonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-27440530679048391722009-08-24T02:05:00.007+05:302009-08-24T03:08:46.949+05:30कुछ नज्में, शेर-ओ-शायरी (Nazm, Sher-o-Shayari)किस-दर्ज़ा दिशिकां थे मुहब्बत के हादसे,हम ज़िन्दगी में फ़िर कोई अरमां न कर सके...************************************जाने किस चमन की शाख़ सूनी हो गई होगी,फ़कत ये सोच कर हम फूल तोहफ़े में नही लेते...************************************उम्र भर यही गलती करते रहे...धूल थी चेहरे पे,और हम आइना साफ करते रहे...************************************महफ़िल का ये सन्नाटा तो तोड़े तो कोई नाज़िस,सागर ही छलक जाए...Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-10921866490670983892009-08-22T22:32:00.006+05:302009-08-29T21:06:51.902+05:30उंगलिया थाम के (Ungliyan Tham Ke)उंगलियाँ थाम के ख़ुद चलना सिखाया था जिसेराह में छोड़ गया, राह पे लाया था जिसे ।उसने पोंछे ही नही अश्क मेरी आँखों सेमैंने ख़ुद रो के बहुत देर हसाया था जिसे ।छू के होठों को मेरे मुझसे बहुत दूर गईवो ग़ज़ल, मैंने बड़े शौक से गाया था जिसे ।अब बड़ा हो के मेरे सर पे चढा आता हैअपने कंधे पे कुँवर हस के बिठाया था जिसे ।--कुँवर बेचैनAnonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-70718251704261640922009-08-21T20:59:00.002+05:302009-08-24T02:32:54.287+05:30किसी के इतने पास न जा (Kisi ke Itna paas na Ja)किसी के इतने पास न जाके दूर जाना खौफ़ बन जायेएक कदम पीछे देखने परसीधा रास्ता भी खाई नज़र आयेकिसी को इतना अपना न बनाकि उसे खोने का डर लगा रहेइसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आयेतु पल पल खुद को ही खोने लगेकिसी के इतने सपने न देखके काली रात भी रंगीली लगेआंख खुले तो बर्दाश्त न होजब सपना टूट टूट कर बिखरने लगेकिसी को इतना प्यार न करके बैठे बैठे आंख नम हो जायेउसे गर मिले एक दर्दइधर जिन्दगी के दो पल कम हो Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-40823352303300826322009-08-21T20:39:00.002+05:302009-08-24T02:33:36.587+05:30अभी कुछ सांस बाक़ी है…(Abhi Kuch Sansh Baaki Hai)डूब रही हैं साँसे मगर ये गुमान बाक़ी हैआने का किसी शख्स के अभी उम्मीद बाक़ी हैमुद्दत होयी एक शख्स को बिछ्ड़े लेकिनआज तक मेरे दिल पे एक निशाँ बाक़ी हैवो आशियाँ छिन गया तो कोई गम नहीअभी तो मेरे सिर पे ये आसमान बाक़ी हैकश्ती ज़रा किनारे के करीब ही रखनाबिखरी हुई लहरों में अभी तूफान बाक़ी हैतुम्हारे ही अश्कों ने लब भर दिए वर्नाअभी तो मेरे दुखों कि दास्ताँ बाक़ी हैगमों से कह दो कि अभी ना अपना सामान बांधेंकि Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-22528001713711931812009-08-21T20:36:00.002+05:302009-08-24T02:33:56.501+05:30शख़्सियत (Shakhshiyat)अल्फ़ाज़ों मैं वो दम कहाँ जो बया करे शख़्सियत हमारी,रूबरू होना है तो आगोश मैं आना होगा ।यूँ देखने भर से नशा नहीं होता जान लो साकी,हम इक ज़ाम हैं हमें होंठो से लगाना होगा ......हमारी आह से पानी मे भी अंगारे दहक जाते हैं ;हमसे मिलकर मुर्दों के भी दिल धड़क जाते हैं ..गुस्ताख़ी मत करना हमसे दिल लगाने की साकी ;हमारी नज़रों से टकराकर मय के प्याले चटक जाते हैं॥--अज्ञातAnonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-11014925434589507552009-08-21T20:31:00.002+05:302009-08-24T02:34:12.304+05:30कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं (Kabhi Unki Yaad Aati Hai Kabhi Unke Khwab Aate Hain)कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं,मुझे सताने के सलीके तो उन्हें बेहिसाब आते हैं।कयामत देखनी हो गर चले जाना उस महफिल में,सुना है उस महफिल में वो बेनकाब आते हैं।कई सदियों में आती है कोई सूरत हसीं इतनी,हुस्न पर हर रोज कहां ऐसे श़बाब आते हैं।रौशनी के वास्ते तो उनका नूर ही काफी है,उनके दीदार को आफ़ताब और माहताब आते हैं।--अज्ञातAnonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-86373890773379126022009-08-21T20:25:00.002+05:302009-08-24T02:34:28.515+05:30ज़माने बीत जाते हैं (Zamane Beet Jaate Hain)कभी नज़रे मिलाने में ज़माने बीत जाते हैं,कभी नज़रे चुराने में ज़माने बीत जाते हैं।किसी ने आँख भी खोली तो सोने की नगरी में,किसी को घर बनाने में ज़माने बीत जाते हैं। कभी काली सियाह रातें हमे इक पल की लगती हैं ,कभी इक पल बिताने में ज़माने बीत जाते हैं।कभी खोला दरवाज़ा खड़ी थी सामने मंज़िल,कभी मंज़िल को पाने में ज़माने बीत जाते हैं।एक पल में टूट जातें हैं उमर भर के वो रिश्ते,जो बनाने में ज़माने बीत Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-54252374991738111332009-07-14T15:10:00.004+05:302009-07-14T15:24:45.762+05:30हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह (Ham Tere shahar mein aayein hain mushafir ki tarah)हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह -2,सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे।हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह -२।मेरी मंजिल है कहाँ मेरा ठिकाना है कहाँ -2,सुबह तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ,सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे ।हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह -२।अपनी आंखों में छुपा रक्खे हैं जुगनू मैंने,अपनी पलकों पे सजा रक्खे हैं आंसू मैंने,मेरी आंखों को भी बरसात का मौका दे दे।हम Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-76949077989058559822009-07-14T14:10:00.002+05:302009-07-14T14:15:17.434+05:30कानून में सुधार आया है! (Kanoon me Sudhar aaya hai)चाहे मानसून लेट आया हैपर एहसास नया ये लाया है,कानून में सुधार आया हैदेश में अब बदलाव आया है|लड़के को लड़की न खोजनीना लड़की को लड़का,कोई भी मिल जाये चलेगाबस भिडे प्रेम का टांका |शायद अब किसी घर मेंमूंछों वाली भाभी आएँगी,कन्यायें कन्या को भी अबजीजू जीजू बुलाएंगी|उन्मुक्त गगन के नीचे केवलअब जोड़े ना रास रचाएंगे,बदला बदला होगा मंजरलड़के जब लड़का पटायेंगे|पुलिस के पास भी अब शायदछेड़छाड़ के केसेज बढ़ जायेंगेAnonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-63871044371389988392009-07-09T00:58:00.003+05:302009-07-09T22:29:15.264+05:30लकड़ जल के कोयला होय जाए (Lakad Jal ke Koyala ho jae)लकड़ जल के कोयला होय जाएलकड़ जल के कोयला होय जाएकोयला होय जाए - खाक जिया जले तो कुछ न होय रेन धुंआ न राख जिया न जलइयो रे हायजिया न लगईयो रे हायजिया न जलइयो रे हायबर्फ पिघल के पानी होय जाये रेबर्फ पिघल के पानी होय जाये रेबदल बन उड़ जाएपीड जिया में ऐसी बैठी रे बैठीऐसी बैठी रे बैठीन पिघले न जाए रेनदी किनारे बहते सहारेन ना लगईयो रेहाय जिया न लगईयो रेजिया न जलइयो रे हायलकड़ जल के कोयला होय जाएहो झूठे Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-49917369967311522502009-07-05T16:09:00.002+05:302009-07-05T16:12:15.183+05:30तमाशा (Tamasha)तमाशानमस्कार,कोई सम्बोधन इसलिये नहीं दे रही हूँ क्योंकि आपके लिये मेरे पास कोई सम्बोधन है ही नहीं । जब अपने चारों तरफ नंजर दौड़ाती हूँ तो पाती हूँ कि वे सभी जो मेरे आस पास हैं उनके लिये मेरे पास एक उचित सम्बोधन भी है किन्तु आपके लिये ...? आपके लिये तो मेरे पास कुछ भी नहीं है, न भावनाएँ और ना ही सम्बोधन। वैसे अगर रिश्तों की परिभाषाओं के मान से देखा जाए तो आपके और मेरे बीच में भी एक सूत्र जुड़ा है Anonymousnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-26330091724495574212009-07-05T16:02:00.003+05:302009-07-05T16:07:49.455+05:30दंगों पर एक किस्सा और सही (Dango Par Kissa Ek Aur Sahi) Hindi Kahani) दंगों पर एक किस्सा और सही आतंकवाद के जमाने में दंगों के किस्से कौन पढ़ता है, फिर भी समाज की यह एक पुरानी विधा है, यह मान, एक किस्सा और सही .... वह दंगों का शहर था और उस शहर में फिर दंगा हो गया। दो मजहबों के पूजा स्थल पास-पास ही थे। वर्ष में एक बार ऐसा मौका आता कि दोनों धर्मों के उत्सव एक ही दिन आते। तब सार्वजनिक चौक के बंटवारे का प्रश्न आ खड़ा होता। सभी जानते थे कि दंगा होगा इसलिये गुपचुप कईAnonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4863637000141700064.post-4630703199505569592009-07-05T15:56:00.001+05:302009-07-05T15:58:27.570+05:30स्वेटर (Sweter) Hindi Kahaniस्वेटरबाहर अभी उजाला है। हल्का-हल्का उजाला जो अभी थोड़ी देर में अंधेरे की शक्ल लेना शुरू कर देगा। माँ रसोई में अब भी कुछ खटपट कर रही है जबकि उसे अच्छी तरह पता है कि दोनों सूटकेस और बैग पैक हो चुके हैं और अब कोई चीज़ रखने की जगह नहीं।वह कुर्सी पर आराम की मुद्रा में बैठा है। सामने अभिजीत पलंग पर बैठा है। पापा दरवाज़े पर टहल रहे हैं और पता नहीं किस चीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं। वह कभी बाहर की तरफ देखता है,Anonymousnoreply@blogger.com0