कुछ नज्में, शेर-ओ-शायरी (Nazm, Sher-o-Shayari)



किस-दर्ज़ा दिशिकां थे मुहब्बत के हादसे,
हम ज़िन्दगी में फ़िर कोई अरमां न कर सके...
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जाने किस चमन की शाख़ सूनी हो गई होगी,
फ़कत ये सोच कर हम फूल तोहफ़े में नही लेते...
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उम्र भर यही गलती करते रहे...
धूल थी चेहरे पे,
और हम आइना साफ करते रहे...
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महफ़िल का ये सन्नाटा तो तोड़े तो कोई नाज़िस,
सागर ही छलक जाए...
आंशु ही टपक जाए...
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आख़िर जाम में क्या बात थी ऐसी साकी,
हो गया पी के जो ख़ामोश वो ख़ामोश रहा....
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ना छेड़ ऐ हमनशीं कैफियते सहबा के अफसाने
मुझे वो दश्ते खुदफरामोशी के चक्कर याद आते हैं

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Submitted By: देवेश चौरसिया

उंगलिया थाम के (Ungliyan Tham Ke)


उंगलियाँ थाम के ख़ुद चलना सिखाया था जिसे
राह में छोड़ गया, राह पे लाया था जिसे ।

उसने पोंछे ही नही अश्क मेरी आँखों से
मैंने ख़ुद रो के बहुत देर हसाया था जिसे ।

छू के होठों को मेरे मुझसे बहुत दूर गई
वो ग़ज़ल, मैंने बड़े शौक से गाया था जिसे ।

अब बड़ा हो के मेरे सर पे चढा आता है
अपने कंधे पे कुँवर हस के बिठाया था जिसे ।

--कुँवर बेचैन

किसी के इतने पास न जा (Kisi ke Itna paas na Ja)

किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये

किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे

किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रंगीली लगे
आंख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे

किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आंख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये

किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये

किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये

ऐसा सोच कर अकेले न रहना,
किसी के पास जाने से न डरना
न सोच अकेलेपन मे कोई गम नही,
खुद की परछाई देख बोलोगे "ये हम नही"

--अज्ञात

अभी कुछ सांस बाक़ी है…(Abhi Kuch Sansh Baaki Hai)

डूब रही हैं साँसे मगर ये गुमान बाक़ी है
आने का किसी शख्स के अभी उम्मीद बाक़ी है

मुद्दत होयी एक शख्स को बिछ्ड़े लेकिन
आज तक मेरे दिल पे एक निशाँ बाक़ी है

वो आशियाँ छिन गया तो कोई गम नही
अभी तो मेरे सिर पे ये आसमान बाक़ी है

कश्ती ज़रा किनारे के करीब ही रखना
बिखरी हुई लहरों में अभी तूफान बाक़ी है

तुम्हारे ही अश्कों ने लब भर दिए वर्ना
अभी तो मेरे दुखों कि दास्ताँ बाक़ी है

गमों से कह दो कि अभी ना अपना सामान बांधें
कि अभी तो मरे जिस्म में कुछ ओर जान बाक़ी है……..

जा चुके हैं सब लोग खामोश पडी है बस्ती
मगर किसी आस पे…अभी कुछ सांस बाक़ी है…

--अज्ञात

शख़्सियत (Shakhshiyat)

अल्फ़ाज़ों मैं वो दम कहाँ जो बया करे शख़्सियत हमारी,
रूबरू होना है तो आगोश मैं आना होगा ।

यूँ देखने भर से नशा नहीं होता जान लो साकी,
हम इक ज़ाम हैं हमें होंठो से लगाना होगा ......

हमारी आह से पानी मे भी अंगारे दहक जाते हैं ;
हमसे मिलकर मुर्दों के भी दिल धड़क जाते हैं ..

गुस्ताख़ी मत करना हमसे दिल लगाने की साकी ;
हमारी नज़रों से टकराकर मय के प्याले चटक जाते हैं॥

--अज्ञात

कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं (Kabhi Unki Yaad Aati Hai Kabhi Unke Khwab Aate Hain)

कभी उनकी याद आती है कभी उनके ख्व़ाब आते हैं,
मुझे सताने के सलीके तो उन्हें बेहिसाब आते हैं।

कयामत देखनी हो गर चले जाना उस महफिल में,
सुना है उस महफिल में वो बेनकाब आते हैं।

कई सदियों में आती है कोई सूरत हसीं इतनी,
हुस्न पर हर रोज कहां ऐसे श़बाब आते हैं।

रौशनी के वास्ते तो उनका नूर ही काफी है,
उनके दीदार को आफ़ताब और माहताब आते हैं।

--
अज्ञात

ज़माने बीत जाते हैं (Zamane Beet Jaate Hain)

कभी नज़रे मिलाने में ज़माने बीत जाते हैं,
कभी नज़रे चुराने में ज़माने बीत जाते हैं

किसी ने आँख भी खोली तो सोने की नगरी में,
किसी को घर बनाने में ज़माने बीत जाते हैं।

कभी काली सियाह रातें हमे इक पल की लगती हैं ,
कभी इक पल बिताने में ज़माने बीत जाते हैं

कभी खोला दरवाज़ा खड़ी थी सामने मंज़िल,
कभी मंज़िल को पाने में ज़माने बीत जाते हैं

एक पल में टूट जातें हैं उमर भर के वो रिश्ते,
जो बनाने में ज़माने बीत जाते हैं।

--
अज्ञात