मैं कभी बतलाता नहीं
पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूं तो मैं,दिखलाता नहीं
तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब हैं पता, हैं न माँ
तुझे सब हैं पता,,मेरी माँ
भीड़ में यूं न छोडो मुझे
घर लॉट के भी आ ना पाऊँ माँ
भेज न इतना दूर मुज्क्को तू
याद भी तुझको आ ना पाऊँ माँ
क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ
क्या इतना बुरा मेरी माँ
जब भी कभी पापा मुझे
जो ज़ोर से झूला झुलाते हैं माँ
मेरी नज़र ढूंढें तुझे
सोचु यही तू आ के थामेगी माँ
उनसे मैं यह कहता नहीं
पर मैं सहम जाता हूँ माँ
चेहरे पे आना देता नहीं
दिल ही दिल में घबराता हूँ माँ
तुझे सब है पता है ना माँ
तुझे सब है पता मेरी माँ
मैं कभी बतलाता नहीं
पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूं तो मैं,दिखलाता नहीं
तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब हैं पता, हैं न माँ
तुझे सब हैं पता,,मेरी माँ
तुझे सब है पता है ना माँ!!
---प्रशून जोशी
तुझे सब हैं पता, हैं न माँ ( Main Kabhi Batalata nahi, Tujhe sab Pata hai na Ma)
प्रस्तुतकर्ता बेनामी पर 3:31 pmलेबल: प्रशून जोशी
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम,
ऐसे हों हमारे करम,
नेकी पर चलें,
और बदी से टलें,
ताकि हंसते हुए निकले दम...
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम...
जब ज़ुल्मों का हो सामना,
तब तू ही हमें थामना,
वो बुराई करें,
हम भलाई भरें,
नहीं बदले की हो कामना...
बढ़ उठे प्यार का हर कदम,
और मिटे बैर का ये भरम,
नेकी पर चलें,
और बदी से टलें,
ताकि हंसते हुए निकले दम...
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम...
ये अंधेरा घना छा रहा,
तेरा इनसान घबरा रहा,
हो रहा बेखबर,
कुछ न आता नज़र,
सुख का सूरज छिपा जा रहा,
है तेरी रोशनी में वो दम,
जो अमावस को कर दे पूनम,
नेकी पर चलें,
और बदी से टलें,
ताकि हंसते हुए निकले दम...
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम...
बड़ा कमज़ोर है आदमी,
अभी लाखों हैं इसमें कमी,
पर तू जो खड़ा,
है दयालू बड़ा,
तेरी किरपा से धरती थमी,
दिया तूने हमें जब जनम,
तू ही झेलेगा हम सबके ग़म,
नेकी पर चलें,
और बदी से टलें,
ताकि हंसते हुए निकले दम...
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम...
--भरत व्यास
लेबल: भरत व्यास
हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ! (Hawa Hoon Hawa main Basanti Hawa hoon)
प्रस्तुतकर्ता बेनामी पर 3:08 pmहवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी -
अनोखी हवा हूँ।
न घर-बार मेरा,
न उद्देश्य मेरा,
न इच्छा किसी की,
न आशा किसी की,
न प्रेमी न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ।
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
जहाँ से चली मैं
जहाँ को गई मैं -
शहर, गाँव, बस्ती,
नदी, रेत, निर्जन,
हरे खेत, पोखर,
झुलाती चली मैं।
झुमाती चली मैं!
हवा हूँ, हवा मै
बसंती हवा हूँ।
चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में ‘कू’,
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।
पहर दो पहर क्या,
अनेकों पहर तक
इसी में रही मैं!
खड़ी देख अलसी
लिए शीश कलसी,
मुझे खूब सूझी -
हिलाया-झुलाया
गिरी पर न कलसी!
इसी हार को पा,
हिलाई न सरसों,
झुलाई न सरसों,
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
मुझे देखते ही
अरहरी लजाई,
मनाया-बनाया,
न मानी, न मानी;
उसे भी न छोड़ा -
पथिक आ रहा था,
उसी पर ढकेला;
हँसी ज़ोर से मैं,
हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी;
बसंती हवा में
हँसी सृष्टि सारी!
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
--केदारनाथ अग्रवाल
लेबल: केदारनाथ अग्रवाल
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए!! (Ho gayi hai peer parwat si nikalni chahiye)
प्रस्तुतकर्ता बेनामी पर 3:05 pmहो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
-- दुष्यंत कुमार
लेबल: दुष्यंत कुमार
कहाँ है गुलिसतां हमारा? सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा! (Sare Jahan Se accha)
प्रस्तुतकर्ता बेनामी पर 3:02 pmसड़क पर खड़ा था
एक बच्चा बेसहारा
भूखा था वह शायद
जब मैने उसे पुकारा…
सहमा डरा सा
दूर से ही उसने
रोता हुआ, चुपचाप
अपना हाथ बढ़ाया…
पास जाकर देखा
उसके सीने पर लिखा था,
सारे जहाँ से अच्छा
हिन्दुस्तान हमारा!
हम बुलबुले हैं इसकी
कहाँ है गुलिसतां हमारा?
यूँ तेरी रहगुज़र से दिवानावर गुज़रे (Yun Teri Rahguzar se divanavar guzare)
प्रस्तुतकर्ता बेनामी पर 2:57 pmयूँ तेरी रहगुज़र से दिवानावर गुज़रे
काँधे पे अपने रख़ के अपना मजा़र गुज़रे
बैठे रहे हैं रास्ता में दिल का खानदार सजा़ कर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा,
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे !!
--मीना कुमारी
लेबल: मीना कुमारी
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शम्मा की सुरत हो ख़ुदाया मेरी
दूर दुनिया का मेरे दम अँधेरा नो जाये
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाये
हो मेरे दम से यूँ ही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत
ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सुरत या रब
इल्म की शम्मा से हो मुझको मोहब्बत या रब
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से ज़ैइफ़ों से मोहब्बत करना
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको !!
-- इक़बाल
लेबल: इक़बाल
Nigahe Nigahon Se Mila Kar To Dekho. (निगाहें निगाहों से मिला कर तो देखो !)
प्रस्तुतकर्ता बेनामी पर 12:53 amनिगाहें निगाहों से मिला कर तो देखो !
नए लोगों से रिश्ता बना कर तो देखो !
हसरतें दिल में छुपाने से क्या फायदा !
अपने होठों को हिला कर तो देखो !
खामोशी से कब होती हैं ख्वाहिशें पूरी !
दिल की बात बता कर तो देखो !
जो है दिल में उसे कर दो बयां !
ख़ुद को एक बार जता कर तो देखो !
आसमाँ सिमट जाएगा आगोश में !
चाहत की बाहें फैला के तो देखो !
दिल की बात कर के तो देखो !!
--अज्ञात
लेबल: अज्ञात