खिड़कियाँ, सिर्फ़, न कमरों के दरमियां रखना पुराने वक़्तों की मीठी कहानियों के लिए ज़ियादा ख़ुशियाँ भी मगरूर बना सकती हैं बहुत मिठाई में कीड़ों का डर भी रहता है अजीब शौक़ है जो क़त्ल से भी बदतर है बादलो, पानी ही प्यासों के लिए रखना तुम बोलो मीठा ही मगर, वक़्त ज़रूरत के लिए मशविरा है, ये, शहीदों का नौजवानों को ये सियासत की ज़रूरत है कुर्सियों के लिए
अपने ज़ेहनों में भी, थोड़ी सी खिड़कियाँ रखना
कुछ, बुजुर्गों की भी, घर पे निशानियाँ रखना
साथ ख़ुशियों के ज़रा सी उदासियाँ रखना.
फ़ासला थोड़ा सा रिश्तों के दरमियां रखना
तुम किताबों में दबाकर न तितलियाँ रखना
तुम न लोगों को डराने को बिजलियाँ रखना
अपने इस लहजे में थोड़ी सी तल्ख़ियाँ रखना
देश के वास्ते अपनी जवानियाँ रखना
हरेक शहर में कुछ गंदी बस्तियाँ रखना
--नीरज रोहिल्ला
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
-
मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 वर्ष पहले
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें